संतान रेखा
संतान रेखा – किसी भी दंपति के लिए संतान वंश परंपरा को आगे बढ़ाने अर्थात उनके दुनिया से चले जाने के बाद उनकी पहचान बनाए रखने और जीवन के अंतिम दौर में बुढ़ापे की लाठी बनने के लिए जितना आवश्यक है, उतना ही मानव कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। संतानोत्पत्ति, इसमं विलंब या किसी दूसरे तरह की बाधाओं का आना जन्म कुंडली या हस्तरेखाओं के विश्लेषण से ज्ञात किया जा सकता है।
हस्त ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा के ठीक ऊपर संतान की लकीरें होती है। विवाह की रेखा छोटी उंगली के ठीक नीचे होती है और यहीं बुध पर्वत होता है। हालांकि संतान प्राप्ति के योग दूसरी रेखाओं में अंगूठे के नीचे की छोटी सी लकीर या मणिबंध रेखा से भी प्रभावित होते हैं।
मणिबंध रेखा हथेली में होती है। यह संतान योग को अहम् बनाने में सहायक भूमिका निभाती है। जिस किसी व्यक्ति की हथेली पर सम संख्या में दो या चार मणिबंध होते है, उनको कन्या संतान का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त विषम की संख्या में एक या तीन मणिबंध होने की स्थिति में संतान के तौर पर पुत्र प्राप्ति की संभावना बनती है।
इसी तरह से विवाह रेखा के ऊपर की संतान रेखा के खड़ी और सीधी होने की स्थिति में पूत्र की कामना की जा सकती है। यदि यही रेखा टेढ़ी-मेढ़ी रहती है तब पुत्री के रूप में संतान प्राप्त हो सकता है। संतान रेखा के काफी महीन होने की स्थिति में हस्तरेखा की ज्योतिषीय भविष्यवाणी करना संभव नहीं हो पाता है।
संतान की स्वस्थता, रोग या स्वाभाविक प्रकृति या फिर बच्चे के प्रति बारे में माता-पिता का स्नेह-भाव भी इन रेखाओं से पता चलता है। यह रेखा के महीन होने या गहरे होने पर निर्भर करता है। हस्तरेखा विशेषज्ञ बताते हैं कि संतान रेखा के पतले होने की स्थिति में संतान स्वस्थ होकर भी कमजोर रहता है। बाद में उसकी निर्बलता दूर हो जाती है। संतान रेखा के अंत मंे द्वीप बने होने की स्थिति में पुत्र या पुत्री के जीवन पर भी खतरा मंडरा सकता है।
वैदिक ज्योतिष में न केवल संतान योग के बारे में बताया गया है, बल्कि इस सिलसिले में आई बाधा को दूर करने के उपाय की भी चर्चा की गई है। इसके लिए ज्योतिष के विद्वान पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों का विश्लेषण करते हैं। इस अनुसार लग्न में चंद्रमा के मजबूत होने और उसके पांचवें घर में बनी स्थिति के आधार पर संतानेत्पत्ति की संभावना व्यक्त की जाती है। अर्थात कुंडली के घर में मौजूद राशि और उसके स्वामी, बृहस्पति और उसके पांचवें में स्थिति के आधार पर परिणाम निकाले जाते हैं।
इस आधार पर पांचवें घर से पहली, उसके तीसेरे घर से दूसरी संतान के बारे में मालूम होता है। इसी तरह से तीसरे से तीसरे घर से तीसरी संतान का बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। इसी क्रम में आगे की संतानों के बारे में आगे के तीसरे घरों से मालूम होता है। हालांकि कुंडली के अनुसार गर्भधारण के त्रिकोण बनाने वाले भावों को ताकतवर माना गया है। ये तीन भाव लग्न, पंचम और नवम हैं। लग्न अगर व्यक्ति के स्वास्थ्य को दर्शाता है तो पंचम भाव उसके बुद्धि व संतान के बारे में बताता है। इसी तरह से नौंवां भाव भाग्य का है। पांचमें भाव में स्त्री के प्रजनन की क्षमता महत्वपूर्ण है, जिसके ग्रह की स्थितियों की अनुकूलता और प्रतिकूलता बनती-बिगड़ती है।
संतान सुख के लिए शुभ ग्रह शुक्र, बृहस्पति और बुध हैं। इनकी कुंडली के विभिन्न घरों की स्थितियों तथा उन पर पड़ने वाले दूसरे ग्रहों के प्रभाव के आधार पर संतान की संख्या, पुत्र या पुत्री, उसके स्वास्थ्य, मेधा-क्षमता, बौद्धिकता, शारीरिक सबलता-निर्बलता आदि की जानकारी मिलती है। इसके विपरीत संतानहीनता के बारे में मालूम किया जा सकता है, जिन्हें दूर करने के विभिन्न उपायों में वैदिक अनुष्ठान और मंत्र बताए गए हैं। उन्हीं में से एक है गोपाल मंत्र।
गोपाल मंत्र को एक सौ दिनों तक प्रतिदिन एक हजार बार जाप करने से संतान सुख का सौभाग्य मिल सकता है। इस मंत्र को पूरी तरह से विधि-विधान से किया जाना चाहिए, जिसकी पूर्णाहुति दस हजार मंत्रों के साथ हवन कर एवं ब्राह्मणों को भोजन खिलाकर की जाती है। ऐसा संभव नहीं होने की स्थिति में भी दंपति चाहें तो अपने कमरे में लगाए गए भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप की तस्वीर के सामने गोपाल मंत्र का 108 बार जाप कर सकते हैं। तस्वीर में श्रीकृष्ण हाथ में लड्डू लिए होने चाहिए। इनका पूजन मक्खन और मिश्री के भोग के साथ करना चाहिए। ऐसा करने से निरोगी, लंबी आयु वाले संतान की संभावना प्रबल हो जाती है। गोपाल मंत्र बाधित गर्भधारण को दूर करता है, तो बार-बार गर्भपात को रोकता है।
गोपाल मंत्र इस प्रकार हैः- ओम देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः इस मंत्र के प्रयोग के अतिरिक्त संतान कामश्वरी, पुत्र प्रदोषव्रत पुत्र व्रत आदि के भी शास्त्रीय उपाए बताए गए हैं।
संतान दोष न केवल दंपति की कुंडलियों के ग्रहों से बनने वाले दुष्प्रभाव के कारण होते हैं, बल्कि कई बार पितृ दोष या घर का वास्तु दोष भी इसका कारण बनता है। ये दोनों दोष गर्भधारण करने से रोकता है या गर्भपात जैसी स्थितियां पैदा कर देता है। ऐसे लोगों को गणपति की पूजा फूल-फल से करना चाहिए। पूजन के बाद 108 बार गणपति के पुत्र-प्राप्ति मंत्र ओम पार्वतीप्रियानंदनाय नमः का पाठ करना चाहिए।
इसके साथ ही संतानहीनता को दूर करने के दूसरे अनुषठानों में शीतला षष्ठी व्रत है। यह व्रत माध शुक्ल षष्ठी के दिन शीतला देवी की पूजा के संपन्न किया जाता है। इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसका पूजन बासी आहार से किया जाता है इस कारण इसे बासियौरा भी कहा गया है। हालांकि निराश दंपतियों को टोने-टोटके से बचते हुए संतान सुख में बाधक बनने वाले ग्रहों में शानि, राहू, केतू मंगल की शांति पूजन के वैदिक अनुष्ठान करवाए जाने चाहिए। कई बार सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्रम या बृस्पिति भी गर्भधारण में बाधा उत्पन्न करते हैं। इस बारे में कुंडली की गणना के बाद ही उपाय किए जाने चाहिए।
कुछ साधारण उपायों से भी संतान सुख का मनावांछित लाभ मिल सकता है। उदाहरण के लिए रविवार को सूर्योदय के बाद गुड़, गेहूं, केसर, लाल चंदन या सामथ्र्य के अनुसार तांबा या सोना व लाल रंग वाले फलों के दान करना चाहित। गायत्री मंत्रों का जाप शुभ फल दे सकता है, या फिर नीलम या लाजवर्त रत्न धारण करना भी करगर साबित हो सकता है।